Thursday, June 28, 2018

NIOS SHORT TYPE QUESTION MODEL PAPER

 नमस्कार शिक्षक साथियो   उम्मीद है आप सब की  तैयारी सेकंड   इयर  की  बहुत अच्छी चल रही होंगी  फिर भी  कुछ ऐसे  पॉइंट्स होते है जो अक्सर हम भूल जाते है  जिसके कारण हमारा रिजल्ट  जैसा  हम   चाहते है वैसा नहीं आ  पाता  ऐसा  न हो  इसके लिए  ही हम  अपने  इस  ब्लॉग  में  आपके  लिए  लाये है    SHORT

 


TYPE QUESTION  MODEL PAPER जो  की   DLED  के   SECOND YEAR  के लिए बहुत  ही    IMPORTANT   है SHORT TYPE QUESTION  MODEL PAPER  से  आप सब का  बेसिक  मजबूत  होता  है और एग्जाम  में   इसके    बहुत  फायदे  मिलते है   और ये  एक नंबर  का  QUESTION होता  है    केवल थोड़ा सा  आप     इसपे  ध्यान   देकर    अच्छे  नंबर  प्राप्त   कर   सकते   है





SHORT TYPE QUESTION  MODEL PAPER की पीडीऍफ़   फाइल   डाउनलोड  करे   



और     यदि आपने    अभी तक      DLED  SECOND  SEMESTER    की   बिलकुल  भी पढाई   नहीं  की   है   तो    इसके    लिए    हमारे   अन्य       लेख    पढ़े  


Tuesday, June 26, 2018

NIOS DLED MODEL PAPER

नमस्कार शिक्षक साथियो  आज हम आपके लिए  NIOS D.EL.ED  के लिए  504 और  505 का  मॉडल  पेपर लेकर आये है जो की बहुत  ही इम्पोर्टेन्ट है आपके  लिए
हमारे पिछले  लेख में  आपने पढ़ा  था


  Teaching methods of mathematics गणित की शिक्षण विधियां   NIOS DLED 505 FOR DLED 



STUDENTSपर्यावरण दीर्घ प्रश्न उत्तर Pdf के साथ   ब्लॉग पढ़े और पीडीऍफ़ डाउनलोड करे



Prakrtik sankhyayo par vibhinn sankriyaye jod ghatana guna bhaag  for nios students प्राकृत संख्याओ पर विभिन्न संक्रियाए –भाग ,जोड़ना ,गुणा ,घटाना )



पूर्ण संख्या purna sankhya kya hai 


परिमेय संख्या  क्या है  ( परिमेय संख्या किसे कहते है  उदहारण सहित )parimey sankhya kya hai 



संख्या प्रणाली इतिहास,पूर्ण संख्या,परिमेय संख्या,प्राचीन गणन प्रणाली sankhya panali itihass 

तो   आज हम  आपके  लिए  इकाई  ५०४  और  ५०५  से कुछ  महतवपूर्ण प्रशन  के मॉडल पेपर   ले के आये है आप   इसे देखे  ये लॉन्ग     आंसर टाइप  क्वेश्चन  है
 इसकी  पीडीऍफ़  फाइल  डाउनलोड करे 






और   यदि    आपने   अभी तक    ५१२ (WBA ) नहीं  ;लिखा   है  तो    इसे   यहाँ  से  डाउनलोड करे 

Sunday, June 24, 2018

तत्व ज्ञान में बाधक ईश्वरवाद

हमारा निर्माण 23 तत्वों,सूक्षम शरीर के 18 और स्थूल  शरीर के  पांच  तत्वों  से   होता है इसके बाद प्रकृति और पुरुष को मिलकर कुल 25 तत्वों से संसार का निर्माण होता है श्रीमद भगवत गीता में मात्र एक और  26वां तत्व "ईश्वर" को जोड़कर संसार की व्यांख्या की गयी , ईश्वर अर्थात  लीलाधारी  सगुण ब्रह्म,जो अन्तर्यामी है,सांख्य शास्त्र ने प्रकृति ( स्वभाव )  को पुरुष  के अधीन माना है और स्वभाव को सुधाकर दुःख निवारण का रास्ता बताया गया है,




 श्रीमद भागवत गीता ने प्रकृति के साथ-साथ पुरुष को भी  ईश्वर के अधीन माना है, निर्लिप्त कर्म और इन्द्रिय संतुलन से अचल  चित्त होकर भक्ति  के जरिये ऐश्वर्य प्राप्ति का   रास्ता बताया गया है, इस तरह  हम  पाते  है  की श्रीमद भगवत गीता और सांख्यशास्त्र के  निहितार्थ में कोई  प्रयोजन भेद नहीं है ,
आधा सच, झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है,हिन्दू धर्म को ही  भारतीय दर्शन    मान   लेने  के   आधे  सच   के   कारण इस     भ्रम  का    निर्माण  हुआ   है    , प्रत्येक   दूसरा   हिन्दू   अवतार    लेकर   चमत्कार   करने   वाले     ईश्वर    को   सशरीर    मानता  है   और    ईश्वर  को  ही धर्म   मानता  है   , क्यूंकि   ईश्वर  सशरीर   विश्व   की   नैतिक   व्यवस्था को कायम    रखता  है   ,  जब्कि   भारतीय   दर्शन में    ईश्वरवाद पर    पर्याप्त  शंका की  गयी  है , ईश्वर की   अतिरंजना  या   अवतार  का    फिल्मीकरण  तत्व     ज्ञान   के         लिए    प्रेरित   करने   वाली    हमारी  , दिव्य अनुभूति को   पुर्वग्राहित कर   देता   है  , जब   हमारी   इच्छा   की  पूर्ति    हो  जाती    है   , तब    हम       ईश्वर   को    प्रेम   करना   छोड़   देते    है   , इसके   चलते   भगवान्   श्रीकृष्ण   की     लीलाओ का     हैरीपॉटर शो   की तरह तर्ज   पर  रूपांतरण  किया  जा   रहा    है  , प्रतिक   का   अवलंबन  करके    उपासना   करने   वाले   के  सिवा   अन्य  ( अप्रतिक )   उपासको   को  एक    अमानव   पुरुष   ब्रह्मलोक   तक   ले   जाता   है   ,  
यह   अमानव   पुरुष    उपासको   को   उनकी   भावना   के  अनुसार    , जिसके  अत: करण में  लोगो  में   रमण   करने   के   संस्कार   होते     है   , उनको  भोग  संपन्न लोको     में    छोड़    देते   है   और      जिनके   मन   में    वैसे   भाव      नहीं   होते   , उन्हें   ब्रह्म   लोक  में    पहुंचा   देते   है   ,  इसलिए      कह  सकते  है  की    प्रतीकोपासना   तत्व   ज्ञान  में     अवरोधक  है  

Wednesday, June 20, 2018

Teaching methods of mathematics गणित की शिक्षण विधियां


नमस्कार आपका हमारे  ब्लॉग 50UCREATIONS  में  स्वागत  है  आज  हम  गणित की शिक्षण विधिओ के  बारे  में  जानेंगे
गणित की शिक्षण विधियां
जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। “शिक्षण विधि” पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित हो जाती है ।

गणित शिक्षण विधियों के प्रकार(Types of Mathematical Teaching Methods)




      गणित शिक्षण विधि  के  10 प्रकार होते है

1         1 आगमन विधि (Inductive Method):

इस विधि में प्रत्यक्ष अनुभवों, उदाहरणों तथा प्रयोगों का अध्ययन कर नियम निकाले जाते है तथा ज्ञात तथ्यों के आधार पर उचित सूझ बुझ से निर्णय लिया जाता है.... इसमें शिक्षक छात्रों को निम्न बिन्दुओ को ध्यान में  रखकर अधिगम की  प्रक्रिया संपन्न करते है
(क). प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर,
(ख). स्थूल से सूक्ष्म की ओरएवं
(ग). विशिष्ट से सामान्य की ओर 
करवाते है ....

आगमन विधि मे प्रयुक्त चरण ((Steps of Inductive Method  )) ::


सर्वप्रथम हम एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
Example ::- उस उदाहरण का निरीक्षण किया जाता है।
Observation ::- उस उदाहरण के आधार पर एक नियम बनाया जाता है, जिसे सामान्यीकरण कहा जाता है।
उस सामान्य नियम का परीक्षण करके उसका सत्यापन किया जाता है। ( Testing                                         and verification)

  आगमन विधि के गुण::-

एक वैज्ञानिक विधि है, जिससे बालकों में नवीन ज्ञान को खोजनें का मौका उपलब्ध कराता है।ज्ञात से अज्ञात की ओर, सरल से जटिल की ओर चलकर बालकों से मूर्त उदाहरणों से सामान्य नियम निकलवाये जाते है, जिससे बालकों में ज्ञिज्ञासा बनी रही रहती है। स्वयं से अधिगम करनें के कारण अधिगम अधिक स्थाई रहता है। बालक स्वयं ही समस्या का निवारण अपनें विश्लेषण से प्राप्त करते हैं जिससे उनका अधिगम स्थाई रहता है।व्यवहारिक और जीवन में लाभप्रद विधि है।
आगमन विधि के दोष:-
समय अधिक लगता है।अधिक परिश्रम और सूझ की आवश्यकता रहती है।एक तरह से अपूर्ण विधि है, क्योंकि खोजे गये नियमों या तथ्यों कीजांच के लिए निगमन विधि की जरूरत होती है। बालक यदि किसी अशुद्ध नियम की प्राप्ति कर ले तो उसे सत्य को प्राप्त करनें में अधिक श्रम व समय की जरूरत होती है।

2.     निगमन विधि (Deductive Method): 


इस विधि में पहले से स्थापित नियमों व सूत्रों का प्रयोग करके शिक्षक

द्वारा छात्रो को समस्या का समाधान करना सिखाया जाता है नियम से उदाहरण की ओर, सामान्य से विशिष्ट की ओर,सूक्ष्म से स्थूल की ओर. एवं प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर

चलती है|







निगमन विधि के गुण (( Properties of Deductive Method ):-

यह एक सरल और सुविधाजनक विधि है,स्मरणशक्ति के विकास में सहायक है।संक्षिप्त और व्यवहारिक विधि है।बालक तेजी से सीखता है।

निगमन विधि के दोष:-




रटनें की शक्ति पर बल देती है।निजी विश्लेषण क्षमता का प्रयोग न करनें के कारण मानसिक विकास और कल्पना शक्ति का विकास बाधित होता है।रटा हुआ ज्ञान स्थाई नहीं रह पाता है।छोटी कक्षाओं के लिए सर्वथा अनुपयुक्त विधि मानी गयी है 

   विश्लेषण विधि (Analytical Method):-

किसी विधान या व्यवस्थाक्रम की सूक्ष्मता से परीक्षण करने की तथा उसके मूल तत्वों को खोजने की क्रिया को ‘विश्लेषण‘ नाम दिया जाता है।

 यह विधि अज्ञात से ज्ञात की ओर चलती है।इसका प्रयोग रेखागणित में प्रमेयनिर्मेय आदि को सिद्ध करनें में प्रयुक्त होता है.

जैसे – पाइथागोरस का प्रयोगकर्ण का वर्ग = आधार का वर्ग + लम्ब पर बना वर्ग


विश्लेषण विधि के गुण:-

यह एक मनोवैज्ञानिक विधि मानी गयी  हैजो बालको में जिज्ञासा उत्पन्न कर उनमें अध्ययन के प्रति रूचि उत्पन्न करती है।स्वयं समस्या का समाधान करने ,हल खोजनें पर बल देती है। छात्रो में षण क्षमता अर्थात खोज करनें की क्षमता का विकास होता है।स्थाई ज्ञान उत्पन्न होता है।

विश्लेषण विधि के दोष:-

अधिक समय लेनें वाली विधि है।कुशल अध्यापन की जरूरत होती है।अधिक तर्क शक्तिसूझ शक्ति की जरूरत होती है। छोटी कक्षा के बालकों के लिए अनुपयोगी मानी गयी है ।

1.     संस्लेषण विधि (Synthesis Method):

संश्लेषण का अर्थ होता है– अनेक को एक करना,अर्थात इस विधि में कई विधियों का उपयोग करके समस्या का समाधान करनें पर बल दिया जाता है।

हिंदी पढ़ाने में पहले वर्णमाला सिखाकर तब शब्दों का ज्ञान कराया जाता है। तत्पश्चात् शब्दों से वाक्य बनवाए जाते हैं।
संश्लेषण विधि के गुण:-
ज्ञात से अज्ञात की ओर ले जाती हैअर्थात ज्ञात नियमो का प्रयोग करके अज्ञात परिणाम की प्राप्ति की जाती है।

उदाहरण :-


एक वृत्त की त्रिज्या 9 सेमी हैवृत का क्षेत्रफल क्या होगा।

सरल और सुविधाजनक विधि मानी जाती है।समस्या का समाधान तीव्रता से संभव है।स्मरणशक्ति के विकास में सहयोग करती है। ज्यादातर गणितीय समस्याओं का समाधान इसी विधि के उपयोग से किया जाता है।

संश्लेषण विधि के दोष:-

रटनें की प्रवृति पर जोर देती हैजिससे अन्वेषण क्षमता के विकास का मौका उपलब्ध नहीं होता है।नवीन ज्ञानतार्किक क्षमता और चिन्तन रहित विधि हैअर्थात इनके विकास में सहयोग नहीं करती है।अर्जित ज्ञान अस्थाई होता हैअर्थात जब तक सूत्र याद है तभी तक समस्या का हल निकाला जा सकता है.छोटे बालकों में चिन्तन शक्ति का ह्रास करती है।

    प्रयोगशाला विधि (Lab/ Laboratory Method):


इस विधि के प्रयोग के लिए हमें एक प्रयोगशाला की जरूरत होती हैजिसमें हम समस्याओं को यांत्रिक तरीकों से हल करते हैं।

जैसे– पाइथागोरस प्रमेय(Pythagoras theorem) को प्रयोगशाला में सिद्ध करना।

प्रयोगशाला विधि के गुण:

रूचिकर विधि है। स्थाई अधिगम का स्रोततर्क क्षमता निगमन क्षमता का विकास होता है।रचनात्मकता का विकास होता है।

प्रयोगशाला विधि के दोष :

प्रयोगशाला विधि खर्चीली विधि है। कम संख्या वाली कक्षा के लिए ही उपयोग में लाई जा सकती है।छोटे उम्र के बच्चों में रूचि उत्पन्न नहीं कर पाती है।

                            अनुसंधान विधि (Heuristic Method):

बोधपूर्वक किये गये प्रयत्न से तथ्यों को संकलित करके सूक्ष्मग्राही तथा विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन या विश्लेषण करके नये तथ्य या सिद्धान्तों की खोज करना ही अनुसंधान विधि है।

                               समस्य़ा समाधान विधि (Problem Solving Method):

किसी समस्या का समाधान या हल प्राप्त करनें के लिए क्रमबद्ध तरीके से किसी सामान्य विधि या तदर्थ ( AD HOC) विधि का प्रयोग करना पड़ता हैसमस्या समाधान अधिगम के अन्तर्गत ( Learning by solving problem) के अन्तर्गत जीवन में आनें वाली नवीन समस्याओं के तरीको का हल निकालना संभव होता है।

                                        प्रयोजन विधि (Project Method):

इस विधि में किसी भी समस्या के समाधान के लिए छात्र  स्वयं किसी भी समस्या का समाधान अपनीं स्वाभाविक तर्कशक्ति के द्वारा जानकारी प्राप्त करता हैतथा उससे अपनें व्यवहार मे परिवर्तन करके समस्या का हल खोजता है।
इस विधि में समस्या का हल खोजनें के लिए प्रयोजन पूर्ण कार्य किये जातै है।

1                    व्याख्यान विधि (Lecture Method):

यह विधि शिक्षण( अधिगम )  की सबसे प्रचलित विधि है इसमें एक कुशल शिक्षक  अपने व्याख्यान द्वारा पूरी कक्षा या एक समूह को उनकी समस्या के समाधान की विधि से परिचित कराता है।

1           विचारविमर्श विधि (Discussion Method ):

इस विधि में बालक व शिक्षक  अपने तर्कों द्वारा अपनीं समस्याओं को एक दूसरे के अनुभव व ज्ञान के आधार पर सुलझानें का प्रयास करते हैं।



Monday, June 18, 2018

NIOS DLED 505 FOR DLED STUDENTSपर्यावरण दीर्घ प्रश्न उत्तर Pdf के साथ ब्लॉग पढ़े और पीडीऍफ़ डाउनलोड करे

नमस्कार शिक्षक साथियों आप सभी का  हमारे  इस  ब्लॉग  में  स्वागत है  आप  सब यहाँ  पे  पर्यावरण के बारे  में  जान पायेंगे  कैसे  प्रशन पूछे जाते है और उनका उत्तर कैसे  दिया जाता है   ब्लॉग में  पीडीऍफ़ फाइल  इन्क्लुड है आप डाउनलोड कर सकते है 

PART -1
(पर्यावरण शिक्षा क्यों आवश्यक है ? ,अंतराष्ट्रीय विचार ,परिभाषा )
प्रशन १ : पर्यावरण शिक्षा क्यों जरुरी है ? इसके  अंतराष्ट्रीय उद्देश्य क्या है ?
 उत्तर : 1 से  आठवी (8) कक्षा तक 8 साल की अवधि बच्चे के आश्चर्यजनक विकास की अवधि है / इस काळ के दौरान शरीर तर्क ,शक्ति ,बुद्धि.सामाजिक कौशल व भावनाए तथा साथ ही जीवन को मजबूत आधार देने वाले मूल्य तथा अभिधारणाए आकार लेती है
इस अवधि में बच्चा केवल शैक्षिक अधिगम के लिए नहीं अपितु “जीवन के लिए शिक्षा के आधार का  विकास  कर रहा होता है , जीवन के लिए शिक्षा पर्यावरण में ही होती है जैसा की  हम  जानते है पर्यावरण में हमारे आस-पास के संसार का हर पक्ष सम्मिलित होता है /

गरीबी बच्चे के स्वास्थ्य के विकास तथा शिक्षा के रास्ते में जबरदस्त अवरोध उत्पन्न करती है / ख़राब पर्यावरण के कारण इन बच्चो को बहुत कष्ट झेलने पड़ते है /जब भी पर्यावरण दूषित होता है तो बच्चे सबसे पहले इसका शिकार  होते है / पर्यावरण की आपदाओ  के कारण सबसे अधिक खतरे में भी पड़ते  है क्यूंकि वह  प्रौढ़ व्यक्ति से भिन्न  होते है / शरीर  के आकार ,अंगो  की परिपक्वता , आपचय दर , व्यय्व्हार , प्राकृतिक जिज्ञासा तथा ज्ञान   की कमी  इत्यादि घटकों  में अंतर  होने  के  कारण  उनपर अधिक और अलग  प्रभाव  पड़ता   है   /   ऐसे बच्चो  के  बचने  की  भी संभावना  बहुत कम  होती  है  / वे  तो जन्म से  पहले  ही  पर्यावरण  के  दुष्प्रभाव  के शिकार  हो  जाते   है  /



दूसरी तरफ  बच्चे पर्यावरण के संरक्षण  के  लिए सक्रीय एवं शक्तिवान ताकत  होते है  /  उनकी प्रकृति  में  प्राकृतिक रूचि होती  है  जिसे  सरलता पूर्वक    पर्यावरण  के संरक्षण  एवं रक्षा के लिए  प्रयोग में  लाया जा सकता  है   और  वे  इनमे  काफी प्रभाव  शाली  तरीके  से  इनमे  अपना  योगदान  दे सकते   है  बच्चे  और   पर्यावरण  के  मध्य को कई   अंतराष्ट्रीय घोषणाओ व स्वीकृतियो  ने  भी इसे  स्वीकारा है  जिनमे  से  प्रमुख   निम्न है
बाल  अधिकार सम्मलेन ( १९८९)
v प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल  के ढांचे के भीतर कुपोषण एवं बीमारी का सामना/
v बीमारियों तथा कुपोषण का सामना  करने तथा सिक्षा के विकास  के द्वारा पर्यावरण का  सुधार आवास कार्यवाली (1990 ) बच्चो  तथा युवा  की आवश्यकताओ विशेषतौर पर उनके रहने वाले पर्यावरण से जो सम्बंधित हो उनका पूरा ध्यान रखा जाए
v बच्चो के अस्तित्व बचाव और विकास  के लिए कार्य करने  के  लिए कार्य योजना  (1990)
v आठ देशो  के पर्यावरण अग्रणीयो की बच्चो के पर्यावरण स्वास्थ्य  पर घोषणा (1997)
बच्चे  पर्यावरण के कई आयामों  से जोखिमो  का  सामना  करते   है , खासकर  वे प्रदुषण  से पूरी  तरह  प्रभावित  होते है , बच्चो   को इन पर्यावरण  के  दुष्प्रभाओ से दूर रखना
G-8  देशो  के  पर्यावरण मंत्रियो  की  विज्ञप्ति (2001) विकास  की नीतिया बच्चे  के जन्म से पूर्व  तथा जन्म  के तुरंत बाद के विकास सहित उन्हें स्वास्थ्य के उच्चतर  स्तर तक ले जाती है 
v यूरोप तथा मध्य एशिया के बच्चो के लिए बर्लिन प्रतिज्ञा सामजिक  एवं आर्थिक  अवस्थाओ का ध्यान किये बिना  प्रत्येक बच्चे का संरक्षण करो जो पर्यावरण के खतरों से घिरे रहते है / ऐसे शहरी तथा ग्रामीण पर्यावरण का निर्माण करो जिसमे बच्चो का सम्मान हो , जिसमे कई प्रकार के खेल तथा अनौपचारिक अधिगम के अवसरों के लिए घर तथा स्थानीय समुदायों में बच्चो की पहुँच हो
v संयुक्त राष्ट्र की आमसभा (मई 2002)   में  बच्चो पर खास सत्र के द्वारा संसार के अग्रणियो को औपचारिक रूप से कुछ नियम तथा सहारा देने  वाले कार्यो को अपनाने का अवसर जो की  संसार  के बच्चो  को सुरक्षित बना देंगे जिनमे  दस नियम दिए गए  है
v ये  नियम  निम्न है
Ø कोई भी बच्चा इनसे अछूता न रहे
Ø बच्चो को हमेशा प्राथमिकता मिले
Ø हर बच्चे को देखभाल मिले
Ø HIV/ AIDS ( एचआईवी/ एड्स ) से लड़ने की क्षमता
Ø बच्चो का शोषण बंद हो
Ø बच्चो की बात  सुनी जाये
Ø हर बच्चे को शिक्षा दी जाने चाहिए
Ø बच्चो को युद्ध से बचाया जाय
Ø धरा( धरती ) को बच्चो के लिए बचाया जाय
Ø गरीबी से लड़ा जाय , बच्चो पर निवेश किया जाय साधन / बच्चो के लिए भौगोलिक आन्दोलन ( http://www.gmte.orgpen) पर्यावरणीय हालत तथा और भौतिक निम्नस्तरीय आपदाए बहुत साधारण हो गयी है तथा निर्धन व्यक्ति जो की उच्च जनसख्या वाले क्षेत्र में  निवास करते है  वे छूत की बीमारियों से नहीं बच पाते / अंत में अस्वस्थ्य पर्यावरण सभी प्रकार के बच्चो को प्रभावित करता है उनकी शिक्षा की बात कैसे हो सकती है
प्रशन: 2005 NCF में पर्यावरण के महत्व के बारे में  कौन कौन सी बातो पर महत्व दिया गया है  बच्चो के  लिए पर्यावरण सिक्षा का महत्व ?
पर्यावरण अधिगम का एक महतवपूर्ण आयाम है , बच्चे निरंतर अपने पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रियाये करते  रहते है / पर्यावरण में प्रत्येक वास्तु उन्हें अपने तरफ आकर्षित करती है / बच्चे अपने पर्यावरण में विभिन्न प्रकार की वस्तुओ की खोज में लगे रहते है तथा साथ ही वे इसका अनुभव भी प्राप्त करते है साथ ही इन अनुभवों से कुछ न कुछ सीखते/ समझते  रहते है,
जैसे-जैसे उनका आसपास के पर्यावरण में नयी चीजो से  सामना होता है वे  नयी चीजो  के आधार पर उनकी समझ लगातार बदलती रहती है
इस प्रकार हम कह सकते है की पर्यावरण  बच्चो  के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए तरह-तरह के  प्रेरक प्रदान करता है
सिखने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है आस-पास का वातावरण,प्रकृति ,चीजो व लोगो से कार्य व भाषा दोनों के माध्यम से अंत: क्रिया  करना  इधर -उधर घूमना,खोजना ,अकेले काम करना या अपने दोस्तों   या व्यस्को के साथ काम करना ,भाषा को पढना ,अभिव्यक्त करना ,पूछने और सुनने के लिए प्रयोग करना ,ये कुछ ऐसी महतवपूर्ण क्रियाये है जिनसे सीखना संभव होता है इसलिए जिस सन्दर्भ में यह अधिगम होता है उसकी प्रत्यक्षत: संज्ञानात्मक महत्ता होती है
बच्चो के  ये पहले अनुभव पर्यावरण के सन्दर्भ में उससे आगे सिखने व सिखाने के काम  में  लाये जाना  चाहिए क्यूंकि ये बच्चो के प्रत्यक्ष अनुभव ही है , जिनके द्वारा पर्यावरण के बारे में उनकी समझ का विकास किया जा सकता है इस प्रकार बच्चो का निकटस्थ पर्यावरण उनके अधिगम के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बन जाता है
रास्ट्रीय पाठ्यक्रम रुपरेखा 2005 बच्चो के अधिगम में पर्यावरण की भूमिका के महत्व को पहचानते हुए इस बात पर जोर देता है की NCF 2005 बच्चो के पर्यावरण एवं सिखने के बारे में नीचे दिए गए बिन्दुओ पर जोर देता है
Ø सभी बच्चे स्वाभाव से ही सिखने के लिए प्रेरित रहते है और उनमे सिखने  की क्षमता होती है
Ø अर्थ निकलना , अमूर्त सोच की क्षमता विकसित करना , विवेचना का कार्य , अधिगम की प्रक्रिया के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलु है
Ø बच्चे व्यक्तिगत स्तर  पर एवं दुसरो से भी विभिन्न  तरीको से  सिखते  है – जैसे – अनुभव के माध्यम से , स्वयं से चीजे  करने व स्वयं बनाने से , प्रयोग करने से ,पढने से बच्चो को अवसर मिलना चाहिए
Ø स्कूल के भीतर व बाहर दोनों  स्थानों पर सिखने की प्रक्रिया चलती रहती है इन दोनों स्थानों में यदि सम्बन्ध रहे तो सिखने की प्रक्रिया पुष्ट होती है
ये सब होने के लिए बच्चो को अपने आसपास के भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण के साथ जुड़ने के पर्याप्त अवसर  प्राप्त होना चाहिए ,प्रशन पूछे और छानबीन करते रहे और उनकी  उपलब्धियों के बारे में बताते रहे


प्रशन : पर्यावरण का व्यापक अर्थ ? सामाजिक , मानव निर्मित पर्यावरण क्या है  ?

पर्यावरण शब्द फ्रेंच भाषा के शब्द “एन्वायनर” जिसका अर्थ घेरना या समेटने से है , से बना है / इस तरह यदि इसका शाब्दिक अर्थ लिया जाए तो पर्यावरण हम उसे  कह सकते है जो हमे घेरे हुए है या हमारे सभी तरफ का संसार /
तो वह संसार जो हमे घेरे हुए है उसमे क्या क्या है ? इसमें प्राकृतिक एवं सामजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण है, इस भाव के अनुसार पर्यावरण की कोई सीमाए नहीं है – यह सम्पूर्ण,निरंतर तथा अखंड है/ यह सभी जीवित वस्तुओ के साथ हम इन के सहभागी है सीधे शब्दों में कहे तो पर्यावरण अलग- अलग आयामों का एक संयुक्त रूप कहा जा सकता है पर्कारितिक पर्यावरण में आपके चारो ओर अजैव घटक सम्मिलित है जैसे की हवा, पानी,मिट्टी,चट्टानें,/ इसके अतिरिक्त भूमि संदक तथा पौधों जानवरों तथा सूक्ष्म जीवो द्वारा निर्मित जैविक घटक भी शामिल है.जैसा की आप जानते होंगे पौधे जानवरों तथा सूक्षम जीव एक दुसरे पर निर्भर है  खाद्य श्रंखला का यह चक्र निरंतर चलता रहता है
यह क्रिया जीवो में उनके पर्यावरण में कई प्रकार की पारस्परिक क्रियाओ के कारण बनती है.
मानव-निर्मित पर्यावरण:- इसमें तथा इससे वह  पर्यावरण आता है जिसका निर्माण मानव(मनुष्य)  ने  अपनी आवश्यकताओ के लिए स्वयं के द्वारा निर्मित किया है .जैसे – सड़के,इमारते,उद्योग,बाँध,तथा एनी निर्माण जो की मनुष्य को वस्तुए एवं सेवाए प्रदान करते है



आप नीचे दिए गए आकृति देख के बेहतर समझ सकते है



    

सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण :
व्यक्ति परिवार समुदाय ,धर्म शैक्षिक,आर्थिक एवं राजनैतिक संसथान हमारा सामाजिक पर्यावरण बनाते है , सामान्य तौर पर परिवार द्वारा समाज की मूल क्रियाये की जाती है और एक व्यक्ति समाज का सदस्य बनना सीखता है
प्राकृतिक पर्यावरण व समुदाय में व्यक्तियों के बीच पारस्परिक क्रियाकलाप संस्कृति को आकर देती है , एक समुदाय से दुसरे समुदाय तथा एक समाज से दुसरे समाज की संस्कृति भिन्न होती है
हमारी सांस्कृतिक विशेषताए:  जो भोजन हम खाते है ,वस्त्र पहनते है,हमारी परम्पराए तथा प्रतिमान हमारे पर्यावरण के अनुसार होते है ,मुले परम्पराए ,प्रतिमान हमारे प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार होते है
सीधे  शब्दों में  पर्यावरण  वह सब है जो हमे घेरे और समेटे हुए है ,जिसका हम भी एक हिस्सा है कुछ विचारक का  मानना है की पर्यावरण में वह सब है जो हमारे भीतर और बाहर है/
इस प्रकार हम कह सकते है कि पर्यावरण में केवल भौतिक ,भौगोलिक तथा जैविक परिस्थितिया ही नहीं बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक आर्थिक एवं राजनैतिक तंत्र भी शामिल है
व्यापक स्तर पर पर्यावरण को जलवायु जैविक ,सामाजिक तथा मृदा प्रभावित घटकों का जटिल मिश्रण कहा जायेंगा जो जीव पर प्रभाव डालकर उसकी आकृति एवं अस्तित्व का निर्धारण करता है ( Wikipedia se )पर्यावरण हमेशा सक्रीय रहता है कभी निष्क्रिय नहीं होता है जैसा  की आप नीचे  चित्र में देख सकते है









Sunday, June 17, 2018

Prakrtik sankhyayo par vibhinn sankriyaye jod ghatana guna bhaag for nios students प्राकृत संख्याओ पर विभिन्न संक्रियाए –भाग ,जोड़ना ,गुणा ,घटाना )

प्राकृत संख्याओ पर विभिन्न संक्रियाए –भाग ,जोड़ना ,गुणा ,घटाना )
प्रशन 1 : - प्राकृत संख्या पर भाग कैसे संक्रिय होती है
जब P तथा q प्राकृत संख्याये होती है तथा PxQ= r होता है तो, हम करते है
   ‘r’ ‘p’ से विभाजित है तथा   ‘r’ ‘q’ से विभाजित है
              ‘p’ तथा ‘q’ में से प्रत्येक ‘r’ का एक  गुणनखंड है
   ‘r’ , ‘p’ तथा ‘q’ में से प्रत्येक का एक गुणज है
   हम चिन्ह ‘÷ ’ का प्रयोग करते है तथा लिखते है 
     r÷ p=   q तथा  q = p
 
उदहारण:-
  3x5=15  ( इसे हम कहते है )
 15 , 3 व 5 में से प्रत्येक से विभाजित है
 3 तथा 5 में से  प्रत्येक 15 का  एक गुणनखंड है
 3 तथा 5 में से प्रत्येक का एक गुणज 15 है
इसके  अतिरिक्त  हम यह देख  सकते  है 
(a) 1x12 =12     (b)  2x6=18     (c)   4x3  =12
इस प्रकार (a)(b)(c)  प्रदर्शित करते है कि  1,2,3,4,5,6  तथा १२ में  से  प्रत्येक 12  का  एक  गुणनखंड है
प्राकृत संखयो  1,2,3  के  विषय में  आप क्या सोचते है
ऐसी  कोई भी दो  भिन्न प्राकृत संख्याये नहीं है जिनका गुणनफल 1 हो अत:
 1 के केवल एक गुणनखंड 1 है
 क्यूंकि 1x2=2 तथा दूसरा संख्याओ का कोई एक युग्म ऐसा नहीं है जिनका गुणनफल 2 हो इस प्रकार 2 के केवल दो  गुणनखंड 1 व 2 है

पूर्ण संख्या purna sankhya kya hai

परिमेय संख्या क्या है ( परिमेय संख्या किसे कहते है उदहारण सहित )parimey sankhya kya hai
संख्या प्रणाली इतिहास,पूर्ण संख्या,परिमेय संख्या,प्राचीन गणन प्रणाली
प्राकृत संख्याओ पर घटाना संक्रिया
व्य्कलन से तात्पर्य हटाने  से है, वस्तुओ के समूह में हम कुछ को या सभी को हटा सकते है
   उदहारण
5 वस्तुओ में से हम 5 से कम अथवा सभी 5 वस्तुओ को हटा सकते है ,किसी वास्तु समूह से जब सभी वस्तुए हटा ली जाती है तो शेष कुछ नहीं रहता और कुछ नहीं रहने पर उसे  शून्य (0) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है
p-p=0 (जहाँ p एक पूर्ण संख्या है )
प्राकृत संख्या पर गुणन नियम
गुणन किसी संख्या के स्वं के साथ बारम्बार योग को निरुपित करता है
उदाहरण
   3+3 को  3x2 द्वारा लिख सकते है
   3+3+3 को 3x3 द्वारा लिख सकते है
   3+3+3+3 को    3x4 द्वारा लिख सकते है
गुणन के गुण
a)      क्रम विनिमेय गुण:-
 जहाँ 5x4 =       4x5  
यदि p तथा q  दो प्राकृत /  पूर्ण  संख्याये  है   तो  p x q = q x p
अत: प्राकृत  तथा पूर्ण संख्याओ में गुणन क्रम विनिमय  है
b)      संव्वृतता का गुण :-   यदि p तथा q प्राकृतिक अथवा पूर्ण संख्याये है ,तो pxq भी एक प्राकृत अथवा पूर्ण संख्या होती है,
c)       सहचारी गुण:- (pxq)xr=px(qxr) (जहाँ p,q तथा r कोई तीन प्राकृत / पूर्ण संख्याये है
d)      गुणन तत्समक :- गुणन के सन्दर्भ में संख्या 1 का निमंलिखित विशेष गुण  है
Px1=1xp=p (जहाँ p एक प्राकृत   /  पूर्ण संख्या है )
अत: हम कह सकते है :- संख्या ‘1’ का गुणन तत्समक है
e)      गुणन का योग पर वितरण गुण :-
P x (q+r)   =  p x q + p x r
अत: हम कह सकते है “गुणन योग संक्रिया पर वितरण होता है
उदाहरण:-
          5 x (3+4)  = 5 x 7 = 35
Ø 5 x 3 + 5 x 4 = 15+20 = 35
Ø 5 x ( 3+5) = 5 x 3 +5 x 4  


प्राकृत संख्याओ पर योग संक्रियाए
जब समान वस्तुओ के दो संग्रहों को एक  साथ रख दिया जात है , तो नए संग्रह में वस्तुओ की कुल संख्या कैसे ज्ञात की जाए
मान लीजिये कि 2 गोलियों को 5 गोलियों के साथ मिलाया जाता है ,हम बच्चो को उनका योग करना दो विधियों से सिखा सकते है / एक विधि तो यह है कि दोनों संग्रहों  को एक साथ रख लिया जाए तथा मिश्रित संग्रह में गोलियों को गिन लिया जाय
( मान लीजिये 5 गोलियों ) वाला संग्रह को अखंड रख लिया जाए तथा दुसरे संग्रह से एक-एक करके उसमें गोलियां गोदी जाये जैसा की नीचे दिखाया गया है 

प्राकृत तथा पूर्ण  संख्याओ में योग के कुछ गुण
      a)    सम्व्वृत्ता का गुण :- दो प्राकृत / पूर्ण  संख्याओ   का योग  एक प्राकृत / पूर्ण संख्या  होता है  
     b)   क्रम विनिमेय गुण :-  p + q  = q + p जहाँ    p ,q  प्राकृत / पूर्ण संख्याए  है
     c)    सहचारी गुण :( p + q ) + r  = p +(q +r )  जहाँ  p, q , r   प्राकृत / पूर्ण संख्याए है
     d)   पूर्ण संख्याओ में योज्य तत्समक :-  पूर्ण संख्याओ के समूह में ,
4 + 0 = 0 + 4  = 4 होता है
इस प्रकार   p +   0 = 0+p = p ( जहाँ p कोई पूर्ण संख्या है )
अत: 0 ( शून्य ) को  पूर्ण संख्याओ का योज्य तत्समक कहते है 






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