Monday, June 18, 2018

NIOS DLED 505 FOR DLED STUDENTSपर्यावरण दीर्घ प्रश्न उत्तर Pdf के साथ ब्लॉग पढ़े और पीडीऍफ़ डाउनलोड करे

नमस्कार शिक्षक साथियों आप सभी का  हमारे  इस  ब्लॉग  में  स्वागत है  आप  सब यहाँ  पे  पर्यावरण के बारे  में  जान पायेंगे  कैसे  प्रशन पूछे जाते है और उनका उत्तर कैसे  दिया जाता है   ब्लॉग में  पीडीऍफ़ फाइल  इन्क्लुड है आप डाउनलोड कर सकते है 

PART -1
(पर्यावरण शिक्षा क्यों आवश्यक है ? ,अंतराष्ट्रीय विचार ,परिभाषा )
प्रशन १ : पर्यावरण शिक्षा क्यों जरुरी है ? इसके  अंतराष्ट्रीय उद्देश्य क्या है ?
 उत्तर : 1 से  आठवी (8) कक्षा तक 8 साल की अवधि बच्चे के आश्चर्यजनक विकास की अवधि है / इस काळ के दौरान शरीर तर्क ,शक्ति ,बुद्धि.सामाजिक कौशल व भावनाए तथा साथ ही जीवन को मजबूत आधार देने वाले मूल्य तथा अभिधारणाए आकार लेती है
इस अवधि में बच्चा केवल शैक्षिक अधिगम के लिए नहीं अपितु “जीवन के लिए शिक्षा के आधार का  विकास  कर रहा होता है , जीवन के लिए शिक्षा पर्यावरण में ही होती है जैसा की  हम  जानते है पर्यावरण में हमारे आस-पास के संसार का हर पक्ष सम्मिलित होता है /

गरीबी बच्चे के स्वास्थ्य के विकास तथा शिक्षा के रास्ते में जबरदस्त अवरोध उत्पन्न करती है / ख़राब पर्यावरण के कारण इन बच्चो को बहुत कष्ट झेलने पड़ते है /जब भी पर्यावरण दूषित होता है तो बच्चे सबसे पहले इसका शिकार  होते है / पर्यावरण की आपदाओ  के कारण सबसे अधिक खतरे में भी पड़ते  है क्यूंकि वह  प्रौढ़ व्यक्ति से भिन्न  होते है / शरीर  के आकार ,अंगो  की परिपक्वता , आपचय दर , व्यय्व्हार , प्राकृतिक जिज्ञासा तथा ज्ञान   की कमी  इत्यादि घटकों  में अंतर  होने  के  कारण  उनपर अधिक और अलग  प्रभाव  पड़ता   है   /   ऐसे बच्चो  के  बचने  की  भी संभावना  बहुत कम  होती  है  / वे  तो जन्म से  पहले  ही  पर्यावरण  के  दुष्प्रभाव  के शिकार  हो  जाते   है  /



दूसरी तरफ  बच्चे पर्यावरण के संरक्षण  के  लिए सक्रीय एवं शक्तिवान ताकत  होते है  /  उनकी प्रकृति  में  प्राकृतिक रूचि होती  है  जिसे  सरलता पूर्वक    पर्यावरण  के संरक्षण  एवं रक्षा के लिए  प्रयोग में  लाया जा सकता  है   और  वे  इनमे  काफी प्रभाव  शाली  तरीके  से  इनमे  अपना  योगदान  दे सकते   है  बच्चे  और   पर्यावरण  के  मध्य को कई   अंतराष्ट्रीय घोषणाओ व स्वीकृतियो  ने  भी इसे  स्वीकारा है  जिनमे  से  प्रमुख   निम्न है
बाल  अधिकार सम्मलेन ( १९८९)
v प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल  के ढांचे के भीतर कुपोषण एवं बीमारी का सामना/
v बीमारियों तथा कुपोषण का सामना  करने तथा सिक्षा के विकास  के द्वारा पर्यावरण का  सुधार आवास कार्यवाली (1990 ) बच्चो  तथा युवा  की आवश्यकताओ विशेषतौर पर उनके रहने वाले पर्यावरण से जो सम्बंधित हो उनका पूरा ध्यान रखा जाए
v बच्चो के अस्तित्व बचाव और विकास  के लिए कार्य करने  के  लिए कार्य योजना  (1990)
v आठ देशो  के पर्यावरण अग्रणीयो की बच्चो के पर्यावरण स्वास्थ्य  पर घोषणा (1997)
बच्चे  पर्यावरण के कई आयामों  से जोखिमो  का  सामना  करते   है , खासकर  वे प्रदुषण  से पूरी  तरह  प्रभावित  होते है , बच्चो   को इन पर्यावरण  के  दुष्प्रभाओ से दूर रखना
G-8  देशो  के  पर्यावरण मंत्रियो  की  विज्ञप्ति (2001) विकास  की नीतिया बच्चे  के जन्म से पूर्व  तथा जन्म  के तुरंत बाद के विकास सहित उन्हें स्वास्थ्य के उच्चतर  स्तर तक ले जाती है 
v यूरोप तथा मध्य एशिया के बच्चो के लिए बर्लिन प्रतिज्ञा सामजिक  एवं आर्थिक  अवस्थाओ का ध्यान किये बिना  प्रत्येक बच्चे का संरक्षण करो जो पर्यावरण के खतरों से घिरे रहते है / ऐसे शहरी तथा ग्रामीण पर्यावरण का निर्माण करो जिसमे बच्चो का सम्मान हो , जिसमे कई प्रकार के खेल तथा अनौपचारिक अधिगम के अवसरों के लिए घर तथा स्थानीय समुदायों में बच्चो की पहुँच हो
v संयुक्त राष्ट्र की आमसभा (मई 2002)   में  बच्चो पर खास सत्र के द्वारा संसार के अग्रणियो को औपचारिक रूप से कुछ नियम तथा सहारा देने  वाले कार्यो को अपनाने का अवसर जो की  संसार  के बच्चो  को सुरक्षित बना देंगे जिनमे  दस नियम दिए गए  है
v ये  नियम  निम्न है
Ø कोई भी बच्चा इनसे अछूता न रहे
Ø बच्चो को हमेशा प्राथमिकता मिले
Ø हर बच्चे को देखभाल मिले
Ø HIV/ AIDS ( एचआईवी/ एड्स ) से लड़ने की क्षमता
Ø बच्चो का शोषण बंद हो
Ø बच्चो की बात  सुनी जाये
Ø हर बच्चे को शिक्षा दी जाने चाहिए
Ø बच्चो को युद्ध से बचाया जाय
Ø धरा( धरती ) को बच्चो के लिए बचाया जाय
Ø गरीबी से लड़ा जाय , बच्चो पर निवेश किया जाय साधन / बच्चो के लिए भौगोलिक आन्दोलन ( http://www.gmte.orgpen) पर्यावरणीय हालत तथा और भौतिक निम्नस्तरीय आपदाए बहुत साधारण हो गयी है तथा निर्धन व्यक्ति जो की उच्च जनसख्या वाले क्षेत्र में  निवास करते है  वे छूत की बीमारियों से नहीं बच पाते / अंत में अस्वस्थ्य पर्यावरण सभी प्रकार के बच्चो को प्रभावित करता है उनकी शिक्षा की बात कैसे हो सकती है
प्रशन: 2005 NCF में पर्यावरण के महत्व के बारे में  कौन कौन सी बातो पर महत्व दिया गया है  बच्चो के  लिए पर्यावरण सिक्षा का महत्व ?
पर्यावरण अधिगम का एक महतवपूर्ण आयाम है , बच्चे निरंतर अपने पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रियाये करते  रहते है / पर्यावरण में प्रत्येक वास्तु उन्हें अपने तरफ आकर्षित करती है / बच्चे अपने पर्यावरण में विभिन्न प्रकार की वस्तुओ की खोज में लगे रहते है तथा साथ ही वे इसका अनुभव भी प्राप्त करते है साथ ही इन अनुभवों से कुछ न कुछ सीखते/ समझते  रहते है,
जैसे-जैसे उनका आसपास के पर्यावरण में नयी चीजो से  सामना होता है वे  नयी चीजो  के आधार पर उनकी समझ लगातार बदलती रहती है
इस प्रकार हम कह सकते है की पर्यावरण  बच्चो  के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए तरह-तरह के  प्रेरक प्रदान करता है
सिखने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है आस-पास का वातावरण,प्रकृति ,चीजो व लोगो से कार्य व भाषा दोनों के माध्यम से अंत: क्रिया  करना  इधर -उधर घूमना,खोजना ,अकेले काम करना या अपने दोस्तों   या व्यस्को के साथ काम करना ,भाषा को पढना ,अभिव्यक्त करना ,पूछने और सुनने के लिए प्रयोग करना ,ये कुछ ऐसी महतवपूर्ण क्रियाये है जिनसे सीखना संभव होता है इसलिए जिस सन्दर्भ में यह अधिगम होता है उसकी प्रत्यक्षत: संज्ञानात्मक महत्ता होती है
बच्चो के  ये पहले अनुभव पर्यावरण के सन्दर्भ में उससे आगे सिखने व सिखाने के काम  में  लाये जाना  चाहिए क्यूंकि ये बच्चो के प्रत्यक्ष अनुभव ही है , जिनके द्वारा पर्यावरण के बारे में उनकी समझ का विकास किया जा सकता है इस प्रकार बच्चो का निकटस्थ पर्यावरण उनके अधिगम के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बन जाता है
रास्ट्रीय पाठ्यक्रम रुपरेखा 2005 बच्चो के अधिगम में पर्यावरण की भूमिका के महत्व को पहचानते हुए इस बात पर जोर देता है की NCF 2005 बच्चो के पर्यावरण एवं सिखने के बारे में नीचे दिए गए बिन्दुओ पर जोर देता है
Ø सभी बच्चे स्वाभाव से ही सिखने के लिए प्रेरित रहते है और उनमे सिखने  की क्षमता होती है
Ø अर्थ निकलना , अमूर्त सोच की क्षमता विकसित करना , विवेचना का कार्य , अधिगम की प्रक्रिया के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलु है
Ø बच्चे व्यक्तिगत स्तर  पर एवं दुसरो से भी विभिन्न  तरीको से  सिखते  है – जैसे – अनुभव के माध्यम से , स्वयं से चीजे  करने व स्वयं बनाने से , प्रयोग करने से ,पढने से बच्चो को अवसर मिलना चाहिए
Ø स्कूल के भीतर व बाहर दोनों  स्थानों पर सिखने की प्रक्रिया चलती रहती है इन दोनों स्थानों में यदि सम्बन्ध रहे तो सिखने की प्रक्रिया पुष्ट होती है
ये सब होने के लिए बच्चो को अपने आसपास के भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण के साथ जुड़ने के पर्याप्त अवसर  प्राप्त होना चाहिए ,प्रशन पूछे और छानबीन करते रहे और उनकी  उपलब्धियों के बारे में बताते रहे


प्रशन : पर्यावरण का व्यापक अर्थ ? सामाजिक , मानव निर्मित पर्यावरण क्या है  ?

पर्यावरण शब्द फ्रेंच भाषा के शब्द “एन्वायनर” जिसका अर्थ घेरना या समेटने से है , से बना है / इस तरह यदि इसका शाब्दिक अर्थ लिया जाए तो पर्यावरण हम उसे  कह सकते है जो हमे घेरे हुए है या हमारे सभी तरफ का संसार /
तो वह संसार जो हमे घेरे हुए है उसमे क्या क्या है ? इसमें प्राकृतिक एवं सामजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण है, इस भाव के अनुसार पर्यावरण की कोई सीमाए नहीं है – यह सम्पूर्ण,निरंतर तथा अखंड है/ यह सभी जीवित वस्तुओ के साथ हम इन के सहभागी है सीधे शब्दों में कहे तो पर्यावरण अलग- अलग आयामों का एक संयुक्त रूप कहा जा सकता है पर्कारितिक पर्यावरण में आपके चारो ओर अजैव घटक सम्मिलित है जैसे की हवा, पानी,मिट्टी,चट्टानें,/ इसके अतिरिक्त भूमि संदक तथा पौधों जानवरों तथा सूक्ष्म जीवो द्वारा निर्मित जैविक घटक भी शामिल है.जैसा की आप जानते होंगे पौधे जानवरों तथा सूक्षम जीव एक दुसरे पर निर्भर है  खाद्य श्रंखला का यह चक्र निरंतर चलता रहता है
यह क्रिया जीवो में उनके पर्यावरण में कई प्रकार की पारस्परिक क्रियाओ के कारण बनती है.
मानव-निर्मित पर्यावरण:- इसमें तथा इससे वह  पर्यावरण आता है जिसका निर्माण मानव(मनुष्य)  ने  अपनी आवश्यकताओ के लिए स्वयं के द्वारा निर्मित किया है .जैसे – सड़के,इमारते,उद्योग,बाँध,तथा एनी निर्माण जो की मनुष्य को वस्तुए एवं सेवाए प्रदान करते है



आप नीचे दिए गए आकृति देख के बेहतर समझ सकते है



    

सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण :
व्यक्ति परिवार समुदाय ,धर्म शैक्षिक,आर्थिक एवं राजनैतिक संसथान हमारा सामाजिक पर्यावरण बनाते है , सामान्य तौर पर परिवार द्वारा समाज की मूल क्रियाये की जाती है और एक व्यक्ति समाज का सदस्य बनना सीखता है
प्राकृतिक पर्यावरण व समुदाय में व्यक्तियों के बीच पारस्परिक क्रियाकलाप संस्कृति को आकर देती है , एक समुदाय से दुसरे समुदाय तथा एक समाज से दुसरे समाज की संस्कृति भिन्न होती है
हमारी सांस्कृतिक विशेषताए:  जो भोजन हम खाते है ,वस्त्र पहनते है,हमारी परम्पराए तथा प्रतिमान हमारे पर्यावरण के अनुसार होते है ,मुले परम्पराए ,प्रतिमान हमारे प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार होते है
सीधे  शब्दों में  पर्यावरण  वह सब है जो हमे घेरे और समेटे हुए है ,जिसका हम भी एक हिस्सा है कुछ विचारक का  मानना है की पर्यावरण में वह सब है जो हमारे भीतर और बाहर है/
इस प्रकार हम कह सकते है कि पर्यावरण में केवल भौतिक ,भौगोलिक तथा जैविक परिस्थितिया ही नहीं बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक आर्थिक एवं राजनैतिक तंत्र भी शामिल है
व्यापक स्तर पर पर्यावरण को जलवायु जैविक ,सामाजिक तथा मृदा प्रभावित घटकों का जटिल मिश्रण कहा जायेंगा जो जीव पर प्रभाव डालकर उसकी आकृति एवं अस्तित्व का निर्धारण करता है ( Wikipedia se )पर्यावरण हमेशा सक्रीय रहता है कभी निष्क्रिय नहीं होता है जैसा  की आप नीचे  चित्र में देख सकते है









No comments:

Post a Comment

thanks for sharing for review

https://amzn.to/2Ipoz3q