संख्या प्रणाली इतिहास,पूर्ण
संख्या,परिमेय संख्या,प्राचीन गणन प्रणाली
:- संख्या प्रणाली
का भारत में योगदान
आधुनिक प्राम्भिक प्रणाली ,अर्थात दस अंको ०.१, २ ,३,४,५,६,७,८ तथा ९
को मूलत: भारतीयों ने अभिकल्पित किया था
तथा इसे अरब वासियों ने पहले अपने देश
,उसके बाद पश्चिमी संसार में फैलाया अत; इस संख्या प्रणाली को हिन्दू अरेबिक
संख्या प्रणाली का नामा दिया गया
संख्याओ की दूसरी प्रणाली की तुलना में इस प्रणाली का एक अदितीय लाभ
है की संख्या चाहे कितनी भी बड़ी हो इसे इन्ही दस अंको में माध्यम से व्यक्त किया
जा सकता है (0,1,2,3,4,5,6,7,8,9)
इन दस अंको से दस एकांकी
संखायाए अभिव्यक्त होती है,यदि हमे 9 से बड़ी
किसी संख्या की आवश्यकता है तो हम दो अंको वाली संख्यावो यथा १०, ११ १२
.......२५.....५९ ९८.......९९का सर्जन करते है
आपकोपता चल गया गया होंगा
की हम इन संख्याओ
का किस प्रकार सृजन करते है
इन दो अंकीय संख्याओ
में अंको के दो स्थान निर्धारित हैदाई और के स्थान को इकाई का स्थान और बायीं
और के स्तन को दहाई का स्थान कहते है
इकाई के स्थान में
अंको के मान एकिक होते है जैसे संख्या २६ में में
इकाई के स्थान पर संख्या ६ है तथा इसका मान भी ६ है संख्या २६ में दहाई के स्थान पर संख्या दो(२) का स्थानीय
मान दो दहाई ( २० ) है जबकि इसका प्रत्यक्ष मान २ है
इसी प्रकार सैकडे के
स्थान पर स्थित किसी अंक का स्थानीय मान उसके प्रत्यक्ष मान का 100 गुना होता है
पूर्ण संख्या क्या है ?
पूर्ण संख्या क्या है ?
किन्तु एक अंक ऐसा
भी है जिसका स्थानीय मान हमेशा एक सामान
रहता है वह संख्या शून्य (0 ) है
हिन्दू संख्या
प्रणाली में शून्य का एक अदितीय योगदान है इसे चाहे किसी
भी स्थान पर रखा जाए इसका मान शून्य ही रहता है फिर इसका क्या महत्व है ?
किसी तीन
संख्या मान लीजिये की वह संख्या
१०८ है
जिसमे दहाई के स्थान पर स्थित अंक
0 ( जीरो) का स्थानीय मान शून्य है
कल्पना कीजिये की
संख्या यदि जीरो न हो
तो १०८
जैसी संख्याओ का क्या होंगा ?
संख्या कम होकर
१८ ही रह जाएँगी तथा एक पूर्ण भ्रम की
स्थित भी उत्पन्न हो जाएँगी यहाँ जीरो (0 ) अपना निर्धारित स्थान अविकल करता है
तथा संख्या को उचित पहचान प्रदान करता है
अत: जीरो (0 ) को दसनिक
संख्या प्रणाली में स्थान-धारक कहा जाता
है
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